Tuesday 27 December 2016

अनुभूति....

किस चोले को ओढ़ जी रही हूँ मैं ,एक साध्वी सा यह भगवा चोला ,कौन कहता हैं मैंने भगवा नहीं पहन रखा ?

यह मेरा भगवा ही तो हैं ,एक रंगी ,जिसमे कुमकुम लाल रंग का अलग से छिटकाव नहीं ,यह भगवा ही हैं ,जिसने सूरज की रोशनी से उभरे ,गहरे पिले रंग को स्वत; की मटमैली चादर में छुपा लिया हैं ,यह भगवा ही हैं ,जिसने अपने अंदर एक ज्वार को दबा लिया हैं।
न जाने कितने रंग हैं मेरे ,खुद से अपरिचित ,कही कुमकुम का गहरा लाल ,कही धूल माटी में खेलते बच्चो सा सुखद ,अनूठा भूरा। कही शांत,अनोखा ,अद्वितीय नीला। कही नव अंकुरित पर्णो सा हल्का ,सुलज्जित हरा ,कही अनुभव की बरखा में नहाये बरसो से अपनी जगह पर डटे अश्वत्थ वृक्ष के पत्तो का सा गहरा हरा। कभी पंछियों के कलरव से भरे स्वयं में तृप्त ,परम विस्तारित आसमंत सा गहरा नीला। कभी शारदीय शीतलता की दुग्ध आकाश गंगा सा मेरा रंग शुद्ध ,चमकीला शुभ्र-सफ़ेद। कभी हरिद्रा के लेप सा गहरा पिला , कभी गर्व से दीप्त विजयिनी सा सुनहरा।

मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व हिल रहा हैं ,समुन्दर के अंदर आये उछाल सा।  लगता हैं किसी झूले की सवारी  पर बिठा दिया गया हैं मुझे , मन ,सर ,प्राण सब हिल रहे हैं ,मेरे अस्तित्व और अब तक के मेरे विश्वासों पे प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं।

प्रश्न यह नहीं की क्या हो रहा हैं ? प्रश्न यह हैं, कि मैं क्या हूँ ? आने वाली आंधी आती हैं और मेरे स्वयं के बारे में सारी धारणाओं पर प्रश्न चिन्ह लगा जाती हैं।

स्वयं को परिभाषित करना नामुमकिन हो गया हैं ?मैं कौन हूँ ?

 शायद ..  मैं बदलाव हूँ।  ठहराव या रुकाव नहीं ,सच भी नहीं झूठ भी नहीं ,नीति नियम धर्म कुछ नहीं ,मैं... मैं  शायद अनुभूति हूँ। जो हर पल स्वयं को ही नए रूप,नए विचारो  ,नए विश्वासों के साथ अनुभूत कर रही हैं। मैं कोई नाम नहीं , कोई जाती ,कोई संज्ञा नहीं,धर्म भी नहीं ।

  मैं हास्य हूँ ,कुछ अर्थो में रुदन भी , मैं भक्ति हूँ ,करुणा हूँ,क्रोध हूँ ,आनंद हूँ।  मैं चंचल हूँ ,सतत गतिमान भी।  जीवन मेरे लिए हर पल नए रूप रंग ले आता हैं ,कभी मुस्कुरा देती हूँ ,कभी गुमसुम हो जाती हूँ।

दूर पहाड़ो पर , आज भी मुझे लगता हैं की वो मेरा इंतज़ार कर रहा हैं।  शायद यहाँ तो बस ये चोला हैं ,मैं वही रहती हूँ ,उस पहाड़ पर , स्वप्नों की सप्तरंगी दुनिया में ,जहाँ वो हैं और मैं हूँ ,उसने पहने उस मोरपंख में मेरे मन में पंख पसारे सारे रंग विराजमान हैं ,शायद इसलिए वो मेरी याद में मोरपंख लगाए हैं। उसके सुरो में मेरे अंतर के सारे सुर विद्यमान हैं ,इसलिए वो बांसुरी होठो पे लगाए हैं।

उस झूले  की डोरे तो हैं पर कोई आधार नहीं , वह निरालंब झूला ही मेरा आलंब हैं। स्वप्न परबत के आंगन  में पड़े उस झूले पर राधा कृष्ण विराजमान हैं ,राधा रूप में मैं हूँ या स्वयं कान्ह रूप में मैं हूँ ? मुझे ज्ञात नहीं।
 बस मैं हूँ वही कही। इस दुनिया से मेरा शायद कोई नाता नहीं ,या कहूँ मैं यहाँ हूँ ही नहीं। मेरी आँखे उस पठार की चोटी पर जा चिपकी हैं ,शायद मेरा कान्ह उस पहाड़ से उतर मेरा हाथ थामने आ जाये।  मांगती हूँ की कही कोई दुनियां हो जहाँ सदियों से कालापानी की सजा पा रहे नारी मन को मुखरित होने की छूट हो।  जहाँ शास्त्रो और शास्त्रीयता का दिखावा न हो ,बस जीवन को जीने की इच्छा और स्वतंत्रता  मात्र हो। जहाँ अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए , भौतिक वस्तुओ की नहीं मात्र मानवीयता की जरुरत हो।

कभी कभी लगता हैं दूर आकाश में उड़ते उस विमान के पंखो पर बैठके दूर बहुत दूर चला जाये ,इतनी दूर जहाँ से  इस भौतिक जगत का कोई वास्ता न रहे ,जहाँ सिर्फ शांति हो ,एक मधुर गीत हो ,खुली हँसी हो।  जहाँ नदियां ,पहाड़,वृक्ष ,प्राणी सभी मित्र हो और मैत्री में कोई स्वार्थ न हो। जहाँ उम्र के अंतर न हो , न नर नारी का भेद , जहाँ कलुषता न हो ,कृपणता न हो ,जहाँ जीवन का अर्थ सिर्फ सच्चा आनंद हो ,खरा सा निष्पाप सा प्रेम।

प्रेम जो कभी वृन्दावन में था ,कभी गोकुल के हर आँगन द्वार पे।

कौन कहता हैं कृष्ण चले गए हैं , वो अपने हर रूप में मेरे अंदर विद्यमान है।
कहते हैं अर्जुन को उन्होंने ही दिव्य रूप के दर्शन कराये थे ,जब अपने अंदर जब  कोटि-कोटि समुद्रों की हलचल,नदियों की झिलमिल ,पवन की गति ,बुद्ध की शांति , बालको सी शरारत वह मन्त्र मुग्ध सरल हँसी , कभी काली की शक्ति,प्रेम और भक्ति महसूस करती हूँ तो लगता हैं ,कृष्ण मेरे अंदर ही हैं ,अपने हर रूप में विराजित। कृष्ण मेरा ही रूप।

शून्य भाव से किनारे पर बैठ जब सागर को निरंतर देखती रहती हूँ तो लगता हैं मेरा मन ही सागर हैं ,जिसके अंतर में मेरी सारी स्मृतियां विराजमान हैं ,कही मोती -  रत्नों के रूप में ,तो कोई पानी में जीती मत्स्याओं के रूप में ,कोई जल में  निमग्न ज्वालामुखियों के रूप में ,कोई मस्तिष्क की कठिनतम रचना शंख के रूप में ,सागर को भी उसका अंत कहाँ पता हैं  ? वो तो केवल विस्तार हैं ,मेरा मन ...  भी तो  केवल विस्तार हैं।  भौतिक जगत के लिए वह विस्तार , लहरो के रूप में किनारे तक आता हैं। ऊँचे - ऊँचे उछाल खा सागर तट पर आती लहरे ,जैसे मेरे भाव ,कभी आनंद ,कभी रुदन ,कभी दोनों का संगम। कभी कभी कोई याद सिंपलों के रूप में तट तक चली आती हैं ,दुनिया उसे अच्छे/बुरे नाम दे देती हैं ,पर मेरे लिए हैं वो केवल मेरे मन का विस्तार !

मैं नीतिनियमो की कोई पुस्तक नहीं हूँ ,न पूर्व लीखित कोई विधान , सही-गलत ,उत्तर -अनुत्तर मैं कुछ भी नहीं ,
मेरा मन स्वयं को अनुभूत करने में निमग्न हैं । हर श्वास के साथ आती - जाती ,समुन्दर की तरह उछाले खाती , चट्टानों को तोड़ती ,खुद टूटती -बिखरती ,गिरती -लहराती ,आँखों को शांति देती ,मन को असीम पूर्णता का भाव देती , जीवन अनुभूति।

मैं मात्र एक अनुभूति।

डॉ. राधिका
वीणा साधिका




Thursday 15 December 2016

कभी - कभी डर लगता हैं ,की झूठेपन और लालच से भरी इस दुनिया में हम जैसी सच की राह पर चलने वाली ,अंधी होकर समाज के नियमो को सहज स्वीकार न करने वाली ,अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अकेले ही खड़ी हो जाने वाली लड़कियां सुरक्षित हैं ? रहेंगी ? लड़की हो डर के रहो ,सुरक्षित रहो और समाज की नज़रो में ऊँची बनी रहने के लिए चाहे तो प्राण भी दे दो ,पर चुप रहो ,सहती रहो ,प्रतिकार मत करो . सजी संवरी सी , हंसती -खेलती एक गुडिया बनी रहो ,जिसे देखते कोई कहे ,बेटी हैं ,बहूँ हैं ,नातिन हैं ,माँ हैं ,घर की इज्जत हैं ,पत्नी हैं .पर कोई यह न कहे की यही वो जो हटके हैं ,औरो से अलग अपनी राह में चलने वाली शक्ति हैं . अब आज ये सब क्यों कह रही हूँ क्योकि ,आज भरे स्टेशन पर एक नाटक हुआ ,एक और मैं थी जो सच्चाई का हाथ थामे बैठी थी ,एक और वह था जिसकी आवाज आसमान को भी फाड़ दे ,और टोन ऐसा की सभ्यता शर्मा जाये .
सुबह के ११:३० का समय ,बैंक से निकल कर स्टेशन पहुचने की जल्दी में मैंने एक ऑटो पकड़ा ,स्टेशन आते ही मैंने उसे तय २० रूपये निकाल कर दिए , मैं आजकल ट्रेन से सफ़र करती नहीं तो मेरे पास कोई पास नहीं था ,जाहिर हैं टिकट की लाइन में खड़े होकर मुझे टिकिट भी निकालना था और मैंने १२:३० बजे का अपॉइंटमेंट मेरी एक म्यूजिक थेरेपी की पेशेंट को दे रखा था .ऑटो वाले ने २० का नोट देखते ही चिल्लाना शुरू कर दिया " मेडम ५० रूपये होते हैं " मैंने कहाँ भाई मीटर क्यों नहीं डाला ,दुरी के हिसाब से २० ही होते हैं बात भी हुई थी .,वो और गरजने लगा " अरे औकात नहीं हैं तो ऑटो में क्यों बैठते हो ,पैसा दो मेरा आदि "
मैंने कहा भाई ईमानदारी से जो होता हैं वो लो . मीटर से हज़ार रुपया भी होगा तो दूंगी ,झूठा पैसा नहीं दूंगी .
चुकीं मैं जल्दी में थी और उससे बात करने का कोई फायदा नहीं था तो टिकिट लेने चली गयी ,थोड़ी देर बाद वह वहां भी प्रकट हो गया ,मेडम पैसा दो ,औकात नहीं हैं तुम्हारी , और फालतू की बुरी बाते .
मैंने उसे कहा मैं तुम्हारी कंप्लेंट करुँगी ,ऑटो का नंबर नोट किया ,आसपास खड़े लोगो को बताया ,फिर भी उसकी हिम्मत मुझे मेरे पैसे देते हुए कहने लगा " " औकात नहीं हैं ऑटो में बैठने की ,ये रख लो पैसे जाओ वडा पाव खाओ ,मीटर से नहीं चलता ऑटो ,चलो मैं वापस लेके चलता हूँ तुम्हे ,दिखाता हूँ कितना पैसा होता हैं "
सारा स्टेशन तमाशा देख रहा था ,मैंने वापस पैसे उसे थमाये और गुस्से से आगे बढ़ दी .
वहां खड़े लोगो और सिड्को के एक सिक्यूरिटी ऑफिसर ने मुझे सलाह दी की मुझे इसकी पोलिस कंप्लेंट करनी चाहिए . मेरा पास उतना समय नहीं था .मैंने RTO क्लाम्बोली के नंबर घुमाये ,पर सारी लाइन्स व्यस्त !
JPR रेलवे हेल्प लाइन को फ़ोन किया उन्होंने कहा हम आपकी इसमें मदद नहीं कर सकते आप नजदीकी पोलिस स्टेशन जाये .
अलबत्ता !! इस बीच ऑटो वाला भाग चूका था ,मेरे पास उसका नंबर ३८८७ नोट था ,लेकिन पोलिस स्टेशन जाना यानि और २ -३ घंटे बर्बाद करना . मुझे फाउंडेशन पहुंचना जरुरी था ,सो बिना कंप्लेंट किये निकल ली .
खैर आज का मामला तो निपट गया ,मेरी जगह कोई दूसरी सीधी लड़की होती तो ऑटो वाले की चीखती आवाज उसका वो भयंकर अंदाज़ और धमकी सुनके डर के जितना मांगता दे देती ,पर मैं तो मैं हूँ ,अन्याय के सामने कभी सर न झुकाने वाली .
यह कहानी आज की नहीं ,रोज की हैं ,या तो आप अपनी कार से जाओ या कैब से क्योकि ऑटो वाले मीटर डालते नहीं ,घर के बहार जो ऑटो स्टैंड हैं ,वहां कई बार जब आपकी गाड़ी पास न हो ,कैब न मिले ,तो किसी इमानदार मीटर से जाने वाले ऑटो वाले के इंतजार में आधा घंटा भी बिताना पड़ता हैं .क्योकि स्टैंड पे खड़े ऑटो वाले जो मुंह में आये वो पैसे बोलते हैं ,जिस जगह जाने के लिए ३०-३५ रूपये लगते हैं लोगो को वहां पहुचने के लिए ऑटो वालो को ८०-१०० रुपये देने पड़ते हैं ,अगर समय रात का हो तो नाईट चार्जेज के नाम पे दुगुने से भी अधिक राशी वो लोग मांगते हैं .
कुछ लोग बोलते हैं पर ज्यादा कर लोग या तो चुप सह लेते हैं हैं या बस ,कार ,कैब से निकल लेते हैं .
पर मुद्दा यह हैं की यह सब कब तक ? RTO वाले बड़े जोश से कम करते हैं चार दिन ,पांचवे दिन से वहीँ हाल .क्या किया जाये इन ऑटो वालो और इनकी तरह के लोगो का .
शर्म आती हैं मुझे की मेरे देश में इस तरह के लोग अपना राज चलाते हैं और कोई कुछ नहीं कर सकता . उस पर आप लडकी हो तो आपको उनसे कोई भी बात कहने से पहले सौ बार सोचना पड़ता हैं क्योकि प्रश्न आपकी सुरक्षा का हैं .
न जाने वो कौनसी घडी आएगी जब लडकिया अपना स्वाभिमान संभाले सर उठाये जी पाएंगी ,हर बुरी बात का विरोध कर देश के कुछ लोगो को सुधार सकेंगी ,न जाने इस भारतीय समाज में लडकियाँ कब शक्ति बन पाएंगी ................................

Thursday 24 November 2016

women's !!! the word woman's itself seems to be something great !!!!

They are different from others .Their energy ,Their power are different for all

If they want to really change something they really do it .

If you challenge them .......

They will do it and they will mean it

WOMAN ARE NOT THAT WHICH THEY SEEM TO BE THEY ARE MORE THAN IT

AAROHI BUDHKAR
Womans are Mysterious!! have power to creat there Magical presence felt !!

नारी ही शक्ति ,नारी अपराजिता।

 डॉ.राधिका वीणा साधिका 

Tuesday 16 February 2016

स्वयंपूर्णा


वो किसी कथा का पात्र नहीं जिन्हें मैं कोई नया नाम दे सकु  ,उन्हें किसी कथाकार ने  अपनी लेखन कला ,शब्द प्राण से जिवंत नहीं किया। वह परी लोक से आई कोई परी नहीं ,नहीं हैं कोई गंधर्व कन्या या अप्सरा। उन्हें नाम देने के लिए मुझे पुराण कथाओं, कल्पनाओं  व ज्ञानकोषो को खंगालने की जरुरत नहीं। नया नाम देने की कोई जरुरत भी नहीं ,उनका नाम वैसे ही बहुत सुंदर हैं। किन्तु फिर भी दिल चाहता हैं की उन्हें आज कोई नया नाम दे ही दू।
क्या कहूँ उन्हें मैं ..... क्या नाम दू ?

 ऊर्जा ..... शक्ति..... ख़ुशी ..... आनंदी.... अपराजिता ... विजया ... मोदिनी  ... अन्नपूर्णा ..... स्फूर्ति
क्या ? जो भी नाम दू उनके वयक्तित्व के सामने कुछ छोटा ,कुछ कम ही नज़र आता हैं।

बहुत जानती नहीं थी उनके बारे में  मैं  ,बस इतना ही जानती थी की वो खेलती हैं ,विभिन्न खेलो में उनकी अच्छी पकड़ हैं।

उस दिन रोज की तरह मैं वहां से गुजर रही थी ,स्विमिंग पूल के पास से, कि लगा कोई मुझे पुकार रहा हैं।  देखा तो वह खड़ी थी सामने। कह रही थी " माना आप संगीत में हैं पर कभी मेरे यहाँ भी आइये ,देखिये तो हमारा स्विमिंग पूल कैसा हैं  आइये न ! अभी चलिए साथ। "
मुझे उनके प्रेम भाव से परिपूर्ण आमंत्रण का बड़ा कौतुक  लगा ,किन्तु उस समय संग न जा सकी।

कुछ दिन बीत गए ,एक दिन रास्ते से गुजरते देखा वो मेरे आगे ही चल रही हैं ,हाथ में बड़ा सा पोटला लिए , कौतुहल जागा,इसमें क्या होगा ? तक़रीबन कुछ मिनटों के बाद वो हमारे कक्ष में आई ,हाथ में वही पोटला धारण किये ,पोटला उन्होंने हमारे सामने रखा ,हम आश्चर्य विस्मित एक दूजे को देख रहे थे।
 उस पोटले से क्या निकलने वाला हैं इस प्रश्न को आँखों में लिए ,बाल सुलभ जिज्ञासा से पूरित हम सब नन्हे बालक - बालिकाओं से  उस पोटले ,तो कभी उन्हें देख रहे थे।
पोटले में लगी गठानें एक - एक कर खुल रही थी ,धीरे - धीरे उस बड़े से पोटले से , बड़े - बड़े बंद डिब्बे निकलने शुरू हुए।
हमने पूछा यह सब क्या हैं ? उन्होंने उतने ही सरल भाव से कहा " मैं रास्ते से आ रही थी ,तो दूकान में पुंगोली ,चिवड़ा ,पाव दिखाए दिए ,आप सबके लिए भाजी सुबह ही बनायीं थी ,एक फल वाला भी था तो यह सब आपके लिए ले आई सोचा सब साथ खाएंगे। हम हर्ष मिश्रित भाव से उन्हें देखने लगे ,हमारे लिए बिना कुछ कारण न जाने वो क्या - क्या ले आई थी ,ऐसा प्यार ,ऐसा दुलार तो बचपन में हमारी माँ ही दिया करती थी।
उस दिन हम सब बच्चे बन गए ,उँगलियों में अटका अटका कर बेसन से बनी पुंगोलिया खाते  हुए हम  सब अपना बचपन याद कर रहे थे।

शायद उनसे  पहले हम में से किसी ने न सोचा था " बरसो बीत गए पुंगोली नहीं खायी  या शायद इस तरह सर्व -सार्वजानिक तौर पर पुंगोली खाना हमारे ' स्टेटस सिंबल ' के विरुद्ध रहा हो !!! अलबत्ता ...

हम उन्हें देख रहे थे ऊँचे आकाश में वो उड़ रही थी ,उन्हें शायद डर लगता ही नहीं था ,हम युवतियां जिस खेल को खेलने और हवा में  कलाबाजियां दिखाने से डर रही थी ,उन्हें उस खेल से ,निचे गिर पड़ने से बिलकुल डर नही था। वो आसमान से हमें हाथ हिला कर प्रेरित कर रही थी और हम ये सोच सोच कर हैरान थे ये खुद को संभाल कैसे रही हैं ? यह उनकी ही प्रेरणा थी की उस दिन हम सब ने ऊँचे आकाश में उड़ान भरी ,धरती को बहुत - बहुत उपर से देखा , किसी विमान में बैठ कर नहीं ,बस एक तार पर लटकते हुए।


वहां कोई गा रहा था ,कोई सिनेमा में देखी डांस स्टेप्स को फॉलो कर रहा था  हंसी -मजाक सब चल रहा था ,पर कही कुछ कमी थी।  अचानक से वो आई और एक ट्रेडिशनल मराठी गाने पर नृत्य करने लगी ,उनके नृत्य में वो जीवंतता थी की हर मन झूमने लगा ,हर कोई नाचने लगा।  जो कमी थी वो पूरी हो गयी।
मैंने सोचा पुनः एक बार सोचा ,कैसे कर लेती हैं यह सब कुछ ?
इतना आनंद ,इतनी जिजीविषा ,इतनी स्फूर्ति ,इतनी प्रेरणा !!!!!

वह हम आप जैसी साधारण स्त्री हैं ,एक साधारण परिवार से ,साधारण वेश धारण किये ,साधी -सरल जिंदगी जीने वाली। पर उनमे कुछ खास हैं ,वह खास जो उन्हें अत्यंत असाधारण बना देता हैं।  एक अलग ही ज्योति हैं वो ,एक अलग ही विश्वास।  वो जीती नहीं वो जीना सिखाती हैं ,वो हँसती नहीं , वो हँसना सिखाती हैं ,वो खिलखिलाती नहीं वो हमें खिलखिलाना सिखाती हैं। वो शायद वह दैवीय शक्ति हैं जो धरा पर आई ही हम सबको जिवंत करने के लिए हैं।

बहुत कुछ सीखा हैं मैंने उनसे उत्साह ,उमंग ,उल्हास। मैं ऋणी हूँ उनकी की मुझे उन्हें जानने का अवसर मिला ,समझने का अवसर मिला। उन्हें धन्यवाद कहना संभव नहीं ,क्योकि धन्यवाद कोई शब्द ही नहीं जो उनके किये को पूरा उतार सके। बस इतना ही कह सकती हूँ स्नेहा जी आप का विचार जब कभी आता हैं जो ह्रदय स्नेह से ,प्रेम से ,आनंद से भर जाता हैं। आज आपका जन्मदिन हैं ,ईश्वर करे आपको हज़ारो वर्षो की उम्र मिले और मुझे आपका साथ। ....



सस्नेह









Aarohi Women Empowerment ………
 
If we declare we have an injection of power, you would laugh at it… and when we say we all have it, you would endorse us insane.
 
Let me elaborate… Polishing and grooming the crude you!! Making the sparkling you!!
 
We are Mumbai based, but our area of working is global- having a noble cause of helping women in achieving their goals by connecting, getting close, counseling and also training (if required). We are a group, helping and empowering in all facets of life, be it professional or emotional.
 
We all have our strengths and weaknesses and being aware about it, one can strengthen our weaknesses and polish our strengths. Meeting like minded people, sharing our thoughts, reading about experiences broaden our vision and enables us clear our ambitions. Process to pursue passions becomes unclouded and easier.
 
We organize various workshops
 
Motivational workshops
Educational workshops
Voice Modulation Workshops 
Hobby related workshops
Counseling workshops
Music therapy workshops
Law Workshops
Healing workshops
Meditation Workshops
 
 We also organize training classes in various art forms like dancing, cooking, music, writing, personality development .We counsel too. 
 
Please register yourself for extending your hands in the noble cause of raising ourselves above from our present level by filling the details .It will get us closer and collectively we hold hands and climb  steps upwards for attaining newer levels of success with ever step.
 
We focusing on women doesn't mean men are excluded.We stand as 'one' for women empowerment.
 
Please fill the registration form.
 

Visit us on

www.aarohipromotions.com

Like us on FB
 
 
Thank you very much

Tuesday 2 February 2016

Gone are the days when women used to be home confined and constraint .Now they are at par of all the facets of life,
Also there are many more who want to be joining the powerful,successful, self reliant .But they need an extra push and we at Aarohi the women empowerment Group do that by training,Grooming and Providing information.We have experts,Counselors,doctors and lawyers to help in our good cause.
Men-o-men we have not excluded you, just...😊
Your help and support is always welcoming welcome ! Join hands in empowering !!!
connect us by sending a few lines about yourself at :

 aweg@aarohipromotions.com
or drop a line on our website's contact page.
www.aarohipromotions.com
Our blog is
http://siddhiaarohi.blogspot.in/?m=1
We are always ready to help  and support .
All friends can join us.Get support or give support to women.
Pl spread this msg as much as possible.

Wednesday 27 January 2016

मैंने  देखा हैं सपनो को हार मानते हुए ,मैंने देखा हैं हिम्मतो को टूट जाते हुए ,देखा हैं आसमान से गिरते तारो को बटोरने की कोशिश में धरती में उन्हें समाते हुए ,मैंने देखा हैं युगो पुरानी गठरी में अपनी आशाओं को छिपा घुटते -घुटाते हुए।  देखा हैं मैंने उम्मीद भरी नज़रो से उन्हें देखते फिर आसुंओ की बाढ़ में उम्मीदें बहाते हुए।
मैं एक नारी ,भारत की नारी ,मैंने देखा हैं कई नारियों को अपनी शक्ति  भूल  पग बिछौना बन जाते हुए।
नारी होने को अभिशाप मानकर एक शापित जीवन बिताते हुए  ........

मैं एक नारी,भारत की नारी ,मैंने देखा हैं मंदिरो में देवो -दानवो द्वारा मुझे पूजते हुए , मेरे एक वर , मेरे आशीष , मेरी शक्ति ,मेरी सिद्धि के लिए मेरे चरणो की पूजा करते हुए ,तप , आराधना , वंदना करते हुए।
मैं भारत की नारी मैंने जाना हैं यह विश्व ,यह धरनी, सूर्य की सहस्त्र किरणे ,  रात्रि का तमस , धरती की गोद फाड़ बहते सैकड़ो जल के स्त्रोत्र यह सब मेरी शक्ति का एक कण मात्र हैं।  मैं भारत की नारी ,केवल मैं जानती हूँ की मैं अश्रु नहीं ,दैन्य नहीं , अबला नहीं मैं हास्य ,चैतन्य ,सम्पूर्ण सबला हूँ। मैं विवेक ,आनंद स्वयं सिद्ध , सिद्धि -सिद्धा हूँ।

मैं और आप हम भारत की नारियां सिद्धि -शक्ति -स्वप्रकाशिका  . ......